Thursday, April 29, 2010

भारतीय संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाते ये टी. वी सीरियल


आज के युग में टेलिविजन मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रचलित साधन है. इस साधन के माध्यम से घर में बैठे लोगों तक मनोरंजन के साथ - साथ ज्ञान और विभिन्न क्षेत्रों में जागरूकता भी पहुँची है. मनोरंजन के लिए अलग - अलग चैनलों पर दिखाए जाने वाले सीरियल आम घरेलू लोगों का पसंदीदा कार्यक्रम है, परन्तु आज दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि टी . वी सीरियल के कुछ कार्यक्रम मर्यादाहीन होते जा रहे हैं. " कलर्स" चैनल पर दिखाया जाने वाला कार्यक्रम "ना आना इस देश लाड़ो" की "अम्मा जी" पता नहीं कौन से भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं? उनके लिए ना तो क़ानून कोई मतलब रखता है और ना ी समाज. उनका अपना संविधान है जिसके तहत वे कोई भी घिनौनी हरकत करती रहती हैं. अत्याचार करना तो उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, जैसे बेटी के जन्म लेते ही उसे मार देना, एक पत्नी के रहते हुए घर के पुरुषों का दूसरा विवाह कर देना, घर की औरतों को घर के बाहर या अन्दर कोड़े से मारना,र की बहुओं को प्रताड़ित करने के लिए अपने गुंडों की सहायता लेना आदि.अब तो उनकी तानाशाही उस हद तक पहुँच गयी है जहाँ मानवता शर्मसार हो जाती है. अब वे अपने बड़े बेटे की नपुंसकता को कुचर्चा से बचाने के लिए, उसकी पत्नी अर्थात अपनी बड़ी बहु को बेटे जैसे देवर के साथ शारीरिक - सम्बन्ध बनाने के लिए बाध्य करती हैं. बड़े क्षोभ के साथ कहना पड़ रहा है, कहानीकार ने अत्याचार की पराकास्ठा को स्थापित करने लिए एक आपतिजनक घृणित मानसिकता का परिचय दिया है.

"जी" चैनल पर दिखाए जाने वाले सी
रियल "पवित्र - रिश्ता" में अर्चना और मानव पति - पत्नी हैं. इनका तलाक क्यों हो रहा है, वह भी एक अजीब सी वजह है.श्रावणी को मानव के छोटे भाई से इतना प्यार था कि वे विवाह के पूर्व ही गर्भवती हो गयी. उसके बच्चे को पिता का नाम देने के लिए, मानव अब अर्चना को छोड़ कर श्रावणी से विवाह करने जा रहे है. विडंबना तो ये है कि अब श्रावणी को विवाह के पहले ही मानव से इतना प्रेम हो गया है कि वे अर्चना को बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर पा रही है.

स्टार प्लस के " विदाई" में आलेख को असामान्य मानसिक अवस्था से लाने वाली उसकी पत्नी साधना है, लेकिन आलेख कि माँ बजाय साधना का अह्समंद होने को, उसे आलेख की ज़िन्दगी से निकालने के लिए सौदेबाजी करती नज़र आती है और आलेख का विवाह किसी धनी घराने की लड़की से करना चाहती थी. कहानी में इस तरह की मानसिकता को बढ़ावा दे कर लेखक आखिर क्या साबित करना चाहते हैं?

क्यूँ नहीं सीरियल एक परिष्कृत साफ़ सुथरी कथा के आधार पे बनाया जाता है जिसमें समाज की ज्वलंत समस्याएं और उनके समाधान को प्राथमिकता दी गयी हो? विवाह की राजनीति अन्य कई सीरियल में भी देखने को मिलती है जैसे उतरन, सजन घर जाना है, लागी तुझसे लगन वगैरह वगैरह. पूरे विश्व में यह माना जाता है कि भारतीय समाज दृढ परिवारों से बनता है जिसकी नीव सम्मानित वैवाहिक संबंध है. एक ऐसा संबंध जो एक परिवार में परिवर्तित होता है, एक ऐसा परिवार जिसमें पति पत्नी आजीवन साथ रहकर अपनी संतान का पालन पोषण करते हैं और वृधावस्था में संतान अपने माता-पिता की देख रेख करते हैं. हमारे टी.वी. सीरियल ने विवाह और परिवार का अर्थ ही बदल दिया है. अच्चा होता सीरियल बनाने वाले भारतीय संस्कृति की विवाह सम्बन्धी गौरवमयी परंपरा को बनाये रखने में सहयोग एवं प्रोत्साहन देते.
- किरण सिन्धु


Thursday, April 8, 2010

कब तक?


कब तक जमीन आग उगलती रहेगी?
कब तक चिताएँ धू - धू जलती रहेंगी?
कब तक घर श्मशान बनते रहेंगे?
दफ़न लाशों से कब्रिस्तान पटते रहेंगे,
सूने आँगन के सन्नाटे पूछते हैं,
कब तक इंसान बेमौत मरते रहेंगे?
- किरण सिन्धु.

छतीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में सी.आर. पी.एफ. के ७६ जवान शहीद हो गए. कितनी सुहागनों की माँग सूनी हो गयीं, कितनी बूढ़ी आँखों के सपने छीन गए,ना जाने कितने मासूम बच्चों के सिर पर से पिता का साया छिन गया. सरकार अपना काम कर रही है.राष्ट्रीय सम्मान के साथ इन शहीदों का अंतिम संस्कार हो जायगा. कहीं काँपते बूढ़े हाथ मुखाग्नि देंगे या कब्र पर मिट्टी डालेंगे तो कहीं यही काम नन्हे मासूम हाथों से करवाया जाएगा.ना जाने ये सिलसिला कब तक चलता रहेगा? देश की सीमा पर शत्रुओं से युद्ध करते हुए जवान शहीद होते हैं तो एक अपेक्षित सार्थक वीरगति को प्राप्त होते हैं, किन्तु अपने ही देश में हम शत्रुओं से घिरे हों तो????