अनुभव किया जब नियति के प्रहार को,
एक सी करुणा थी उनकी आँखों में,
एक सा था भाव उनके चेहरे पर,
मातृ - पितृ विहीन है जीवन जिनका;
देखा मैने उन मासूमों के संसार को.
व्यक्त है जिनकी खुशी, अव्यक्त दुख;
स्वप्न की सीमाएँ व्याकुल विस्तार को,
धर्म, जाति, क्षेत्र की बाध्यता नहीं;
सौहार्द की भाषा स्वीकृत इस परिवार को.
एक सी करुणा थी उनकी आँखों में,
एक सा था भाव उनके चेहरे पर,
मातृ - पितृ विहीन है जीवन जिनका;
देखा मैने उन मासूमों के संसार को.
व्यक्त है जिनकी खुशी, अव्यक्त दुख;
स्वप्न की सीमाएँ व्याकुल विस्तार को,
धर्म, जाति, क्षेत्र की बाध्यता नहीं;
सौहार्द की भाषा स्वीकृत इस परिवार को.
19 सितम्बर को मेरे दिवंगत बेटे किशु (किसलय ) का जन्मदिन है. उसके जाने के बाद यह उसका तीसरा जन्मदिन है. आज के दिन मेरी बेटी कनुप्रिया अनाथाश्रम जाकार वहाँ के बच्चों से केक कटवाती है और उन्हें फल, मिठाई और उपहार देती है. इस दिन अनाथाश्रम के बच्चों का एक समय का खाना मेरे बच्चों की तरफ से होता है, जिन्मे वे स्वयं भी शामिल होते हैं. इस साल 19 सितम्बर को सोमवार है, "संतोष चैरिटी होम" के बच्चों का स्कूल खुला है, अतः 18 सितम्बर, रविवार की सन्ध्या को ही इस कार्यक्रम को आयोजित किया गया. पहली बार मैं भी अपने बच्चों के साथ "चैरिटी-होम" गई. वहाँ के बच्चों से मिल कर मेरे अन्दर एक नई चेतना का संचार हुआ. एक ऐसी प्रतिक्रिया, जिसने मुझे बहुत कुछ सोंचाने पर मजबूर कर दिया. कहीं भी उनका दुःख मेरे दुःख से कम ना था. मैने अपना पुत्र खोया था, उनलोगों ने अपना जनक, पालक और संरक्षक - सबकुछ. बच्चे अलग-अलग उमर के थे, अतः अपनी उँचाई के अनुसार जमीन पर ही बैठे थे. उनलोगों ने एक स्वर में हमारा अभिवादन किया. वाद्य-यंत्रों के साथ मधुर संगीत की प्रस्तुति से इस आयोजन की गरिमा बढाई. मैं अवाक् थी उनके अनुशासन को देख कर. संगीत-कला, चित्र-कला के साथ-साथ उन्हें अन्य रचनात्मक कार्यों मे भी दक्षता हासिल थी. काश! मेरा किशु अपने जन्मदिन मे उपस्थित होता.
आज 19 सितम्बर को मैं पुनः एक कमजोर,विह्वल माँ बन गई हूँ. हर थोड़ी देर पर अपने किशु को याद कर के आँखें भर आती हैं. जन्म से लेकर उसके जाने तक की अनेक यादों ने आकर मुझे घेर लिया है. ना जाने मुझे क्या हो गया है……
आज 19 सितम्बर को मैं पुनः एक कमजोर,विह्वल माँ बन गई हूँ. हर थोड़ी देर पर अपने किशु को याद कर के आँखें भर आती हैं. जन्म से लेकर उसके जाने तक की अनेक यादों ने आकर मुझे घेर लिया है. ना जाने मुझे क्या हो गया है……
मैया, तू कितनी भोली रे!
तू भोली, तेरी ममता भोली,
अपने बच्चों की हमजोली रे.
कातर होकर मैया बोली...
ज्ञान की बातें मैं क्या जानूँ?
वेद, उपनिषद मैं क्यों बाँचू?
मेरा जीवन मेरे बच्चों से है,
सिवा उनके मैं कुछ ना सोंचू.
हे ईश्वर! कुछ देना है तो,
मेरे बच्चों की रक्षा करना
फूले-फले और स्वस्थ रहे वो,
वृद्धावस्था तक दिर्घायु रखना.
- किरण सिन्धु.