समय का पंछी पंख पसारे,
हरदम आगे उड़ता जाये;
लेकिन तू तो वर्षों पीछे,
मुझको अपने संग ले जाये;
यादों में उलझा-भटका कर,
बेसुध कर वही छोड़ आये.
रे मन इतना व्याकुल क्यूँ है?
तू तो सुख-दु:ख का है वाहक,
फिर दु:ख तुझपे हावी कैसे;
अंबर में बिखरी किरणों को,
ढक लेते है बादल जैसे;
हम तो तुझ पर ही आश्रित हैं,
साँसों पर जीवन है जैसे.
रे मन इतना घायल क्यूँ है?
लगता है तू थक सा गया है,
अंतर्द्वंद से लड़ते-लड़ते;
फिर भी तुझको जीना होगा,
सौ-सौ मौते मरते-मरते;
जीवन बस वही रुक जाता,
जिस क्षण तुम हो उससे बिछड़ते.
- किरण सिन्धु