जला कर राख कर दी जिन्दगी,
मेरी चीखें तुझे सोने ना देंगी;
मेरे आँसू तुझे जीने ना देंगे,
मेरी सिसकियाँ तेरे घर का पता पूछती हैं,
बता दे किस कसूर की ऐसी सजा दी?
आजकल जब भी समाचार देखने के लिए टीवी खोलती हूँ अक्सर किसी ना किसी की ह्त्या या आत्महत्या का समाचार देखने को मिलता है.कभी कोई बाईस वर्षीय इंजीनीयर ने छत से कूद कर जान दे दी, तो कभी गगनदीप जैसे क्रिकेटर की गोली लगने से मृत्यु हो गयी. ऐसा युवा पीढ़ी के साथ अधिक हो रहा है. ना तो आत्महत्या करने वाले सोंचते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार पर क्या बीतेगी, और ना ही ह्त्या करने वालों को इस बात से कोई सारोकार है कि जिसकी जान वो ले रहे हैं, उस पर आश्रितजनों का क्या होगा?माँ सर पीट - पीट कर विलाप करती है, बाप जवान बेटे या बेटी के अर्थी को कँधा लगाता है. ना जाने मानवीय चेतना को क्या हो गया है? हम इतने स्वार्थी क्यों हो गए हैं कि सिर्फ अपने बारे में ही सोंच रहे हैं?आज की युवा पीढ़ी क्यों दिशाभ्रमित हो रही है?किसी बिमारी से या किसी दुर्घटना में हमारे किसी प्रिय की मृत्यु होती है तब भी हम रोते हैं, दु:खी होते हैं परन्तु आत्महत्या या ह्त्या के कारण हुई मृत्यु की स्थिति में दुःख के साथ - साथ क्षोभ भी होता है. कारण जो भी हो पर एक हूक सी निकलती है......... काश! ऐसा नहीं होता.
--किरण सिन्धु.
7 comments:
आज की भागती जिन्दगी में इन्सानी सोच किसी भी दूसरे से आगे रहने व कम समय में अधिक पाने की लालसा इन्सानो मे हताशा भर रही है...यह सब ऐसी सोच का ही नतीजा है शायद..
आत्महत्या तो कभी भी जीवन का विकल्प नही हो सकता.
विचारोत्तेजक आलेख
सारगर्भित आलेख..........
गहराई पूर्वक लेखन,,,,,,,,,,,,
अभिनन्दन ! !
ye sab kalyug ki nishaaniyan hain aunty..hum sab dheere vinash ki or badh rahey hain..aur sabse afsos ki baat hai ki human beings are solely reponsible for all this..
zindagi dahshatjada ho gai hai....
zindagi dahshatjada ho gai hai....
dher sari subh kamnaye
happy diwali
from sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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