Wednesday, February 24, 2010

एक अभिलाषा

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले.
- मिर्ज़ा ग़ालिब.

मनुष्य का जीवन अलग - अलग कर्मक्षेत्रों में विभाजित रहता है और उसे सभी कर्मक्षेत्रों को स्वीकार कर के जीना होता है. इन्हीं में से कोई ना कोई क्षेत्र ऐसा अवश्य होता है, जहाँ पर वह अपने अनुभव, कौशल और क्षमता का उपयोग सबसे अधिक करता है. हम ये भी कह सकते हैं कि यह क्षेत्र उसे एक पहचान देता है. मैंने भी अपने जीवन के पच्चीस वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में व्यतीत किये है. एक शिक्षिका या एक कर्मचारी के रूप में मुझे कोई परेशानी कभी भी नहीं हुई लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं कोई छटपटाहट अवश्य थी जो मुझे बेचैन रखती थी. आजकल केन्द्रीय स्तर पर विज्ञान और गणित के पाठ्यक्रम को देश के सभी विद्यालयों में एक करने का निर्णय लिया जा रहा है. निश्चित ही यह एक सराहनीय प्रस्ताव है. यदि अन्य विषयों के लिए भी ऐसा ही निर्णय लिया जाता तो शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति आ जाती. पूरे देश के विद्यार्थियों के मानसिक स्तर को विकसित होने का अवसर प्राप्त होता. यदि हमारी सरकार पाठ्यक्रम के साथ - साथ विद्यालयों के पोशाक, शिक्षाशुल्क तथा शिक्षकों को मिलने वाले वेतन में भी एकरूपता लाने पर विचार करती तो अनेक समस्याओं का समाधान हो जाता. पोशाक की एकरूपता विद्यालय की पहचान न बनकर विद्यार्थी होने की पहचान बनती, शिक्षाशुल्क पर अंकुश लगने से गरीब एवं मध्यमवर्गीय अभिभावकों को राहत मिलती और शिक्षकों के वेतन के स्तर में वभिन्न विद्यालयों में समानता लाने से समाज में शिक्षकों के जीवन - स्तर में भी उत्थान होता.
- किरण सिन्धु.

3 comments:

Udan Tashtari said...

विचारणीय आलेख.

daanish said...

aalekh mei
jaankari milti hai...
aur aapki jaagrukta ka vistaar bhi
pramaanit hota hai...
abhivaadan .

Gaurav Baranwal said...

Mam ......may ye nahi janta ki aap sakari pad par sikchhk hai ya praivet
par may ak bat jarur kahna chahuga ki gorment collego ke prophesaro ki tankhah kam karani chahiye ..........