आज के युग में टेलिविजन मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रचलित साधन है. इस साधन के माध्यम से घर में बैठे लोगों तक मनोरंजन के साथ - साथ ज्ञान और विभिन्न क्षेत्रों में जागरूकता भी पहुँची है. मनोरंजन के लिए अलग - अलग चैनलों पर दिखाए जाने वाले सीरियल आम घरेलू लोगों का पसंदीदा कार्यक्रम है, परन्तु आज दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि टी . वी सीरियल के कुछ कार्यक्रम मर्यादाहीन होते जा रहे हैं. " कलर्स" चैनल पर दिखाया जाने वाला कार्यक्रम "ना आना इस देश लाड़ो" की "अम्मा जी" पता नहीं कौन से भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं? उनके लिए ना तो क़ानून कोई मतलब रखता है और ना ही समाज. उनका अपना संविधान है जिसके तहत वे कोई भी घिनौनी हरकत करती रहती हैं. अत्याचार करना तो उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, जैसे बेटी के जन्म लेते ही उसे मार देना, एक पत्नी के रहते हुए घर के पुरुषों का दूसरा विवाह कर देना, घर की औरतों को घर के बाहर या अन्दर कोड़े से मारना, घर की बहुओं को प्रताड़ित करने के लिए अपने गुंडों की सहायता लेना आदि.अब तो उनकी तानाशाही उस हद तक पहुँच गयी है जहाँ मानवता शर्मसार हो जाती है. अब वे अपने बड़े बेटे की नपुंसकता को कुचर्चा से बचाने के लिए, उसकी पत्नी अर्थात अपनी बड़ी बहु को बेटे जैसे देवर के साथ शारीरिक - सम्बन्ध बनाने के लिए बाध्य करती हैं. बड़े क्षोभ के साथ कहना पड़ रहा है, कहानीकार ने अत्याचार की पराकास्ठा को स्थापित करने लिए एक आपतिजनक घृणित मानसिकता का परिचय दिया है.
"जी" चैनल पर दिखाए जाने वाले सीरियल "पवित्र - रिश्ता" में अर्चना और मानव पति - पत्नी हैं. इनका तलाक क्यों हो रहा है, वह भी एक अजीब सी वजह है.श्रावणी को मानव के छोटे भाई से इतना प्यार था कि वे विवाह के पूर्व ही गर्भवती हो गयी. उसके बच्चे को पिता का नाम देने के लिए, मानव अब अर्चना को छोड़ कर श्रावणी से विवाह करने जा रहे है. विडंबना तो ये है कि अब श्रावणी को विवाह के पहले ही मानव से इतना प्रेम हो गया है कि वे अर्चना को बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर पा रही है.
स्टार प्लस के " विदाई" में आलेख को असामान्य मानसिक अवस्था से लाने वाली उसकी पत्नी साधना है, लेकिन आलेख कि माँ बजाय साधना का अह्समंद होने को, उसे आलेख की ज़िन्दगी से निकालने के लिए सौदेबाजी करती नज़र आती है और आलेख का विवाह किसी धनी घराने की लड़की से करना चाहती थी. कहानी में इस तरह की मानसिकता को बढ़ावा दे कर लेखक आखिर क्या साबित करना चाहते हैं?
क्यूँ नहीं सीरियल एक परिष्कृत साफ़ सुथरी कथा के आधार पे बनाया जाता है जिसमें समाज की ज्वलंत समस्याएं और उनके समाधान को प्राथमिकता दी गयी हो? विवाह की राजनीति अन्य कई सीरियल में भी देखने को मिलती है जैसे उतरन, सजन घर जाना है, लागी तुझसे लगन वगैरह वगैरह. पूरे विश्व में यह माना जाता है कि भारतीय समाज दृढ परिवारों से बनता है जिसकी नीव सम्मानित वैवाहिक संबंध है. एक ऐसा संबंध जो एक परिवार में परिवर्तित होता है, एक ऐसा परिवार जिसमें पति पत्नी आजीवन साथ रहकर अपनी संतान का पालन पोषण करते हैं और वृधावस्था में संतान अपने माता-पिता की देख रेख करते हैं. हमारे टी.वी. सीरियल ने विवाह और परिवार का अर्थ ही बदल दिया है. अच्चा होता सीरियल बनाने वाले भारतीय संस्कृति की विवाह सम्बन्धी गौरवमयी परंपरा को बनाये रखने में सहयोग एवं प्रोत्साहन देते.
- किरण सिन्धु
6 comments:
सर्वप्रथम सादर नमस्कार किरण जी
बिलकुल सही कहा आपने कि आजकल टी.वी. सीरियल्स में सिर्फ टीआरपी के चक्कर में भारतीय संस्क़ति के नाम पर कुछ भी दिखाया जा रहा है, जिसका शायद मूल भारतीय संस्क़ति से कही दूर तक भी रिश्ता नहीं है। पता नहीं कौनसी भारतीय संस्कति को दिखाया जा रहा है। भारतीय संस्क़ति की धज्जियां उडाने में केवल सीरियल्स ही नहीं, न्यूज चैनल भी कसर नहीं छोड रहे हैं जो ब्रेकिंग न्यूज या स्पेशल रिपोर्ट या स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर वो सबकुछ दिखा देते हैं जो शायद इंसान अपने परिवार के साथ देखने में शर्म महसूस करे। कहीं न कहीं हम खुछ भी जिम्मेवार है जो इन वाहयात कार्यक्रिमों को देखकर अपना समय बर्बाद करते है...इस विषय पर कहने को बहुत कुछ है लेकिन अपनी बात को यहीं विराम देते हुए इतना ही कहूंगा कि आपने बहुत अच्छा विषय चुना है और मैा आपकी बात से सहमत हूं। साधुवाद ।।
भारत में अमेरिका की तरह सेक्स क्रांति लाई जा रही है.
सेक्स भी साधारण लोगों को मानसिक गुलाम बनाने का प्रभावशाली साधन है.
क्या किस दुनिया में हैं....आप अभी तक संस्कृति की बात कर रहीं हैं? अरे आज के दौर में आइये विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध की बात करिए, लिव इन रिलेशन की बात करिए, अविवाहित मातृत्व की बात करिए, सेक्स की बात करिए,
संस्कृति बचनी होगी तो बचेगी नहीं तो......
....हम युवाओं को तो जवानी बचानी है.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
बिलकुल सही लिखा है आपने. लेकिन कभी हमने ये नहीं सोचा है कि इन सबको
बढावा भी तो हम दे रहे हैं, एक दिन अगर सीरियल नहीं देखते तो अगले दिन
सबसे पूछते रहते हैं कि कल क्या हुआ था? ये सही है कि TRP को बदने के लिए
कहानी कहाँ शुरू होती है और कहाँ से नए चरित्र का जनम हो जाता है पता ही नहीं चलता,
बस कहानी आगे बढती रहनी चहिये
Shilpa....07.05.2010
very nice
सत्य कहा है आपने किरण जी, इसी कारण मैं इन सब टीवी कार्यकर्मो को देखता ही नहीं हूँ साथ ही औरों से भी निवेदन करता हु के वह भी इन्हें देखना बंद करे| यह कार्यक्रम हमारे समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते, केवल टी आर पी और धनलाभ के लिए बनाये एवं दिखाए जाते हैं|
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